दोस्तों तुलसी माता का सनातन धर्म में इतना अधिक महत्त्व क्यों है? क्यों की जाती है इनकी पूजा और क्या है तथ्य भगवान शालिग्राम और तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2023) के? दोस्तों तुलसी की पूजा पूरे भारत में की जाती है ये तो आप सभी जानते होंगे लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इनकी पूजा क्यों की जाती है ये कारण जानते हैं। इन्ही सभी चीजों के बारे मे जानकारी आज मै आपको दूंगा।
तुलसी के पौधे को बहुत ही पवित्र माना जाता है और इन्हें विष्णुप्रिया के रूप में पूजा जाता है। माता तुलसी को माता लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। प्रत्येक हिंदू के आंगन में माता तुलसी का पौधा अवश्य होता है क्योंकि इनके बिना श्री हरि प्रसाद ग्रहण नहीं करते हैं। जिस घर में ये जितनी हरी भरी रहती है, वहाँ का नकारात्मक ऊर्जा उतनी ही दूर रहती है। माता तुलसी सुख, समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि करने वाली मानी जाती है। कार्तिक महीने में इनकी विशेष सेवा की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है।
देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2023) का आयोजन किया जाता है। उसके बाद से शुभ विवाह के मुहूर्त शुरू होने लगते हैं क्योंकि देवउठनी एकादशी से चातुर्मास का समापन हो जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह होता है।
इस दिन व्रत रखने और तुलसी का भगवान शालिग्राम के साथ विवाह कराने का विधान है। कहते हैं कि ऐसा करने से भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है। क्योंकि पद्म पुराण के अनुसार तुलसी जी, लक्ष्मी जी का ही रूप है और भगवान विष्णु ने शालिग्राम का रूप लिया था।
तुलसी और शालीग्राम जी का विवाह कराने से घर में समृद्धि और सुख पड़ता है। इसलिए सनातन धर्म में देवी और भगवान शालिग्राम का विवाह कराने की परंपरा है। कहते हैं कि तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2023) से माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से धन, वैभव, सुख, समृद्धि घर में आती है और वह अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरी करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी विवाह कराने से व्यक्ति को 1000 अश्वमेध यज्ञ कराने के समान फल प्राप्त होता है। यदि दम्पत्ति तुलसी विवाह करते हैं तो उन्हें कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है तो उनसे विवाह का आयोजन बिल्कुल वैसा ही किया जाता है जैसे सामान्य वर वधू का विवाह कराया जाता है।
तुलसी माता की कथा
तुलसी की पूजा करने के पीछे एक पौराणिक कथा है। आइए सर्वप्रथम यह कथा सुनते।
कथा के अनुसार- माता तुलसी अपने पूर्वजन्म में राक्षस कुल में उत्पन्न हुई थी। अब माता तुलसी जब राक्षस कुल में उत्पन्न हुई तो इसके पीछे उनके इस उत्पन्न होने के पीछे भी एक कथा है जिसपर एक और पोस्ट हम बनाएंगे जो जल्दी ही पोस्ट किया जाएगा। तो उस समय जब ये राक्षस कुल में उत्पन्न हुई तब इनके माता पिता ने इनका नाम वृंदा रखा।
वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु की परम भक्त थी। जब वृंदा बढ़ी हुई तब इनके माता पिता ने दानों रात जालंधर से इनका विवाह कर दिया। वृन्दा बहुत ही पवित्र स्त्री थी और विवाह के पश्चात वे एक पतिव्रता स्त्री बन गई। वे सच्चे मन से अपने पति की सेवा करती थी और किसी भी अन्य पुरुष का ध्यान बिल्कुल नहीं करती थी। कुछ समय के बाद जब देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया तब जलंधर भी उस युद्ध में जाने लगा। उस समय वृंदा वह डरी हुई थी लेकिन उन्हें जलंधर पर पूर्ण विश्वास था और अपने पति वर्ता होने पर भी पूर्ण विश्वास था।
उन्होंने अपने पति से कहा कि स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं और जब तक आप युद्ध से वापस नहीं आ जाते तब तक मैं पूजा में बैठकर भगवान विष्णु से आपकी जीत के लिए प्रार्थना करूँगी और जब आप वापस आ जाएंगे तभी मैं अपना यह संकल्प तो दूंगी। इसके बाद जलंधर युद्ध में चला गया और वृंदा अपना व्रत लेकर पूजा में बैठ गयी। वृंदा के व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर को हराने में असफल होते जा रहे थे। देवताओं के हर प्रयास विफल होने लगे। जब हर तरफ से देवता हारने लगे तो देवता भाग कर भगवान विष्णु की शरण में गए। उनकी प्रार्थना सुनने के बाद भगवान विष्णु ने मना कर दिया।
वे बोले कि वृंदा तो मेरी परम भक्त हैं, मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता, लेकिन देवताओं ने बहुत समझाया, बहुत अनुनय विनय करी। उन्होंने कहा, भगवान अन्य उपाय है ही नहीं। यदि अन्य कोई उपाय होता तो हम आपसे इतनी विनती ना करते। अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं। भगवान विष्णु ने जब देखा की दूसरा कोई उपाय बचा ही नहीं रह गया, कोई अन्य उपाय शेष ही नहीं रह गया। तब उन्होंने अपना रूप परिवर्तित किया और जालंधर के रूप में आ गए। इसके बाद वे वृंदा के महल में पहुंचे तो वृंदा ने अपने पति रूप में भगवान विष्णु को देखा लेकिन पहचान न सकी।
उसे लगा कि उसके पति जालंधर आए हैं। वह पूजा से तुरंत उठ गई और आकर उनके चरण छू लिए। जैसे ही उसने अपना संकल्प तोड़ा, युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और जालंधर का सिर उड़ता हुआ वृंदा के महल में उसके सम्मुख आकर गिरा। वृंदा ने अपने पति का कटा हुआ सिर देखा तो उसे समझते देर न लगी कि उसके साथ छल किया गया है। उसने क्रोध से पूछा कि आप कौन हैं, जिसका मैंने स्पष्ट कर दिया? तब भगवान विष्णु अपने वास्तविक रूप में आ गए।
वृंदा को यह सहन नहीं हुआ कि उसके इष्ट देव ने ही उसके साथ छल किया था। वृंदा क्रोधित हो गई और उसने स्वयं के साथ किए गए इस छल के लिए भगवान विष्णु की शक्ति को साक्षी मानकर उन्हें ही श्राप दिया कि आप इसी क्षण पत्थर के हो जाओगे और तुरंत ही भगवान विष्णु पत्थर के रूप में परिवर्तित हो गए। हर तरफ हाहाकार मच गया। हाहाकार इसलिए मच गया क्योंकि भगवान विष्णु ही जगत के पालक है और जब पालक ही पत्थर बन जाए तो जगत का क्या होगा? देवता भय से कांपने लगे। माता लक्ष्मी भी विलाप करने लगी।
माता लक्ष्मी वृंदा के पास आयी और उन्होंने वृंदा को समझाया। उस से प्रार्थना करें कि वे उसके पति को श्राप मुक्त करें ताकि जगत के पालन का कार्य अनवरत चलता रहे। न रुके। वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त तो कर दिया लेकिन वह अपने पति का सिर लेकर सती हो गई। जब अग्नि की राख ठंडी हुई तो उस राख में से एक पौधा निकला। भगवान विष्णु आत्मग्लानी से भरे हुए थे और उन्होंने सहज भाव से कहा कि आज से इस पौधे का नाम तुलसी होगा और मेरा एक रूप जिसे शालिग्राम कहा जाएगा, नित्य तुलसी के साथ रहेगा।
मेरी पूजा में मैं बिना तुलसी के कोई भी भोग आज के बाद स्वीकार नहीं करूँगा और उसी समय से तुलसी की पूजा पूरे भारत में होने लगी। भविष्य में या अपने औषधीय गुणों के कारण और भी प्रसिद्ध हो गई। तब से भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का प्रयोग होने लगा। तुलसीजी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ कार्तिक मास में एकादशी तिथि को किया जाता है। इस तिथि को देवउठनी एकादशी भी कहते हैं या पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। लोग इस दिन को तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2023) भी करते हैं।
तुलसी विवाह कब है 2023 मे (Tulsi Vivah 2023)
तिथियों की गणना के आधार पर किसी साल तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी के दिन आयोजित किया जाता है और किसी साल देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह का संयोग बन जाता है। माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के अवतार शालिग्राम से कराया जाता है।
आइए जानते हैं कि 2023 में कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि का प्रारंभ कब हो रहा है? अपन कब हो रहा है तो उसे विभाग कम मनाया जाएगा। इस दिन कौन कौन से शुभ योग बन रहा है तथा तुलसी विवाह का कौन कौन सा शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहा है तो
द्वादशी तिथि का प्रारंभ 23 नवंबर दिन गुरुवार की रात्रि में 9:01 पर हो रहा है और द्वादशी तिथि का समापन 24 नवंबर दिन शुक्रवार की शाम में 7:06 पर हो रहा है तो इस प्रकार उदया तिथि के आधार पर और तिथि 24 नवंबर को पूरे दिन प्राप्त हो रही है। इसके आधार पर तुलसी विवाह 24 नवंबर दिन शुक्रवार को ही मनाया जायेगा।
इस साल तुलसी विवाह के दिन बहुत ही शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग प्राप्त हो रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन प्राप्त हो रहा है और अमृत सिद्धि योग सुबह 6:00 बजे के 21 मिनट से प्रारंभ होकर शाम में 4:01 तक है। इस दिन रेवती नक्षत्र सुबह से ही प्रारंभ हो के सामने चार वर्ष के 1 मिनट तक है तथा इसके पश्चात अश्विनी नक्षत्र है।
शुक्रवार का दिन जो माता लक्ष्मी का दिन माना जाता है तथा इसके साथ ही साथ इतने शुभ संयोग में तुलसी विवाह का संपन्न होना बहुत ही सौभाग्य की बात है। इसे दूसरे विवाह से प्राप्त होने वाला लाभ बहुत ही ज्यादा फलदायी होगा।
तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त
वैसे तो इतने शुभ योग में पूरे दिन तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2023) का आयोजन किया जा सकता है परंतु मैं आपको कुछ विशेष दूसरी विवाह का मुहूरत बता रही हूँ जिसमे आप तुलसी माता का विवाह संपन्न कर सकते हैं। 24 नवंबर की सुबह में तुलसी विवाह का जो
- पहला मुहूर्त है वो सुबह में 6:21 बजे से लेकर सुबह में 9:03 तक है।
- दूसरा मुहूर्त दोपहर में 11:23 से लेकर दोपहर में 1:04 तक है।
- तीसरा मुहूर्त दोपहर में 1:44 से लेकर दोपहर में 3:15 तक है।
- चौथा मुहूर्त दोपहर में 3:47 से लेके शाम में 5:08 तक है।
- यदि आप प्रदोष काल में तुलसीजी का विवाह संपन्न करना चाहते हैं तो आप शाम में 5:08 से ले के सामने 6:27 तक तुलसी विवाह संपन्न कर सकते हैं।
तुलसी विवाह के लिए आवश्यक सामग्री
आइए जानते हैं कि तुलसी विवाह में कौन-कौन सी सामग्री लगती हैं
- तुलसी का पौधा
- भगवान शालिग्राम की मूर्ति या तस्वीर अगर ये उपलब्ध नहीं है तो भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की मूर्ति या तस्वीर अगर ये दोनों उपलब्ध नहीं है तो केले के पौधे के संग भी माता तुलसी का विवाह किया जा सकता है।
- इसके पश्चात गंगा जल, शुद्ध जल, कच्चा दूध भगवान शालीग्राम को अर्पित करने के लिए और माता तुलसी को अर्पित करने के लिए पीला वस्त्र
- शालिग्राम भगवान के लिए एक चुनरी माता के लिए श्रृंगार की सामग्री
- माता तुलसी को अर्पित करने के लिए सिंदूर, कुमकुम, हल्दी, अक्षत, चंदन, तुमसे विवाह, कथा की पुस्तक, दीपक, घी, फूल माला, गन्ना, एक या चार आप ले सकते हैं।
- मंडप बनाने के लिए मौसमी फल आंवला, मिठाई, दो नारियल एक कलश की स्थापना के लिए और एक माता तुलसी को अर्पित करने के लिये।
- दो जनियों, एक भगवान शालिग्राम को अर्पित करने के लिए
- और एक कलश, कलश में डालने के लिए हल्दी, सुपारी, सिक्का, दुर्वा, सर्वऔषधि
- तुलसी विवाह में आप नौ ग्रह की स्थापना भी कर सकते हैं जो कि बहुत ही शुभ माना जाता है।
- तुलसी विवाह के समय अगर आप हवन करना चाहते हैं तो हम सामग्री भी आप ले लीजिएगा।
तो ये थी माता तुलसी के विवाह की पूरी जानकारी इस दिन माता तुलसी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। उनके चारों ओर गन्ने का मंडप बनाया जाता है। इसके पश्चात् तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2023) को बहुत ही अच्छे से संपन्न किया जाता है।
सारांश
तो दोस्तों आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट पंसद आया होगा अगर आपका इससे कोई भी मदद हुई तो हमे कमेन्ट मे जरूर बताएं और अगर आपके मन मे कोई सवाल है तो भी आप मुझे कॉमेंट मे पूछ सकते हैं।
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